Sunday, February 20, 2011

साधू स्वाभाव

                                                         !!  जय लक्ष्मी माता !!
                 हमारा ये भारत देश एक महान देश हैं! इस देश में भगवन और उनके पूज्य अवतारों के चर्नस्पर्ष से ये भारत भूमि पवित्र हो गई हैं! इसलियें इस कलियूग मे भी साधना और अध्यात्म में रूचि रखने वाले आज भी जन्म लेते आ रहे हैं! इस भूमि पर कई महान तपस्वी, ऋषि, साधू,संय्सी,मुनि,संत,आदि ने अपनी साधनों को सिद्ध कर, भगवन की कठोर भक्ति कर इस कर्म भूमि पर अपना नाम अमर किया हैं! आज भी वाल्मीकि, विश्वामित्र, व्यास, दुर्वासा, आदि का नाम आदर से ललिया जाता हैं! इन महान पुरुषो के साथ सती अनसूया, सोना माता, आबाइसा, संत मीरा बाई , इन आदि स्त्री शक्तियों का भी गुणगान हम आज भी करते आ रहे हैं! 
                   इन सभी महान वक्तिमत्वो ने घोर तपस्या और कठिन परिश्रम करके भगवान को पाया हैं, ब्रम्हाज्ञान को अनुभव किया हैं! और अंत: में वो सभी उनमे ही लिन हो गए! हम ये कभी भूल नहीं सकते! हम अगर आपकी बुद्धि आजके वैज्ञानिक बातो पर विश्वास करती हैं! तो  में आपको ये बता दूँ की संत मीरा बाई  और शिर्डी के साईं बाबा की बातो को जायदा समय नहीं बिता होगा! क्यों की वो दोनों भी कलयुग के ही थे ना,  मीरा बाई उनके कृष्ण भक्ति के गीत आजभी कानो में सुनने को मिलते हैं! आखिर वो एक निराली साधक थी,और उनकी साधना भी उतनीही निराली थी! जो साधा अंत: में सफल होकर मीराजी अपने में लीन कर अपनेमे समां गयी! इसलियें कहाँ जाता हैं की, मेरा बाई के कृष्ण भक्ति के आन्सुवोने राजस्तान का पाणी सोख लिया!

                   तो इन हर एक साधू- सन्यासी ओं की आपनी एक अलग बात हैं, एक अलग पहचान हैं! मात्र मंजिल सबकी एक हैं! भला हैं उनके रस्ते अलग-अलग क्यों ना हो! ऐसे साधू-संतो के दर्शन मात्र से के लाभ मिलता हैं ये में अपने पहले लेख ( सज्जन पुरुषो के दर्शन से के लाब मिलता हैं ? ) में बता चूका हूँ ! 
                 आज मै आपको ये बताना चाहता हूँ की, कैसे होते हैं साधू-संत , कैसा होता हैं साधू-संतो का महान वक्तिमत्व. कैसा होता हैं उनका स्वाभाव !
                  जिनके दर्शन मात्र से हमारी आँखे धन्य हो जाती हैं! उनका सहवास हमें मिला तो हमारे विचारो में अपने आप बदल होने लगता हैं! मानो पारस से छुकर लोहा भी सोना बन जाता हैं, उसी प्रकार हम भी अपने विचारो की गंदगी को दूर करके इश्वर भक्ति में लीन हो जाते हैं!
                 साधू-संत तो पेढ़ और नदी की तरहा होते हैं! जो अपने लियें कुछ भी नहीं रखते हैं, ना कुछ पाने की इच्छा भी रखते हैं! जिसतरह गंगाजी खुद दुसरो की प्यास बुझाकर खुद प्यासी रहती हैं! उसी प्रकार पेढ़ दुसरो को आसरा, छाया देता हैं, फल देकर दूसरोंकी भूक मिटाता हैं! और खुद सदा बिना आसरे के धुप में भूका प्यासा खड़ा रहता हैं! उनकी तरहा हैं साधू-संतो का स्वाभाव होता हैं ! जो खुद के लियें नहीं दुसरो की मदत करते हुयें इश्वर भक्ति में लीन होजाता हैं! 
                 साधू-संत  तो रोटी के एक टुकड़े में भी संतुष्ट हो जाते हैं! क्यों की उनको भूक होती हैं भगवान के दर्शन की, प्यास होती हैं भगवान के भक्ति की! एसे साधू -संत तो गुलाब के फूल की तरहा होते हैं! वो कहीं पर भी राहों उनके विचारोंकी खुशबू हम इंसानों को क्या पशु-पक्षियों को भी अपने तरफ आकर्षित करती रहती हैं! और साधू-संत हमेशा इंसानों से दूर जंगलो , हिमालयों में जा बसते हैं! और हम लोग उनके पीछे वहां तक पहोच जाते हैं!
          
             एसे  साधू-संतो का स्वाभाव निर्मल और कोमल होता हैं! वो सदा काम, क्रोध, लोभ, आदि विकारोसे सदा मुक्त रहते हैं! आप उनकी आँखों में देख सकते हैं की  कितनी आशा हैं उनकी आँखों में भगवान को पाने की, कितनी प्यास हैं उनकी आँखों में भगवान के दर्शनों की! एसे साधू-संत हमारे बिच रहकर भी उनका मन हमेशा इश्वर के चरणों में होता हैं! उनके सामने जात-पात, धर्म,ना डर रहता हैं! बस बचता हैं तो सिर्फ एक प्यास! भगवान को पाने की प्यास ! उनके शरीर में साधनाओ की गर्मी होंगी, परीक्षाओ की तकलीफ होंगी पर मन में निराशा नहीं होती! जिस तरहा सूर्य उदय होते हीं अपना तेज बढ़ता हैं, उसी प्रकार तरहा साधू-संत लोग भी हर समय अपनी भक्ति का तेज बढ़ाते रहते हैं! और प्रभु भक्ति में लीन होते जाते हैं ! 
                                                    !! जय लक्ष्मी माता !!


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