!! जय लक्ष्मी माता !!
साधना का अर्थ
मानव शारीर एक मिटटी के घड़े की तरह होता है! और मानव शरीर नश्वर है और अपवित्र भी है ! इसलियें किसी मिटटी के घड़े में हम यदी गंदगी भरकर उसे गंगा जल से धोयेंगे या फिर उसे गंगाजी में साल भर डुबाकर रखेंगे ! पर जब हम सालो बाद उसे निकालेंगे और खोलेंगे तो घड़े में गन्दगी ही पाएंगे ! इसीलियें हम लाखो तीर्थयात्रा करें , पर हमारा शारीर तो शुद्ध नहीं होगा ! परन्तु हमारा शारीर सजीव है ! हमारे शारीर में आत्मा का वास है , इसीलियें ज्ञान से ही ये शारीर निर्मल होता है!
गीता-पुराण , कुरान , बायबल , अदि विभीन धर्मो की किताबो में ये लिखा है, की मै ही परमात्मा हूँ ! तो फिर हम लोग इश्वर को मंदिरों, मस्जितो ,गिरिजाघरों मै क्यों खोजते है! इसलियें हमें खुद के और भगवान के बारे मै समजना पड़ेगा ! मानव शारीर के अन्दर इन्द्रियों का संचालन हमरा मस्तिष्क करता है और हमारे मस्तिष्क की डोर हमारे मन के हातो होती है! यदि हमरा मन पवित्र है तो हमारा शारीर पूरा पवित्र ही! तो इसका मतलब यहीं हुवा की मन की साधना ही सबसे ऊँची साधना है !
साधना का साधारण भाषा में सही अर्थ है साध्य होना , पा लेना , कुछ है जो आपने साद लिया ! उदाः आप एक चित्रकार हो और आप दिन रात चित्रों के बारे मं सोचते हो और चित्रकारी करते हों ! और यहीं सालो तक करने के बाद आपको अपनी चित्रकारी में महारत हासिल हो जाएगी ! इसका मतलब आपने अपनी कला को साध लिया ! याने आपने इतनी सालो मे जो महेनत की वो आपकी साधना थी , और जो उस में प्रवीणता हासिल की वो आपकी सिद्धि थी !
इसका मतलब हम जो भगवान की कृपा पाने को करते है, वही हमारी साधना है !और जो हम भगवान से प्राप्त करते है , वो हमारी सिद्धि कहलाती ही ! इस साधना को करने के लियें हमें अपनी आत्मा की पवित्रता की जरुरत होती है! क्यों की हमरा शारीर ही हमारा माध्यम है ,जो हमें हमें इश्वर प्राप्ति में मदत करता है ! शारीर आत्मा से ही सजीव कहलाता है ! और हमारी आत्मा का मंदिर ही हमारा शारीर होता है! बस हमें जरुरत है उस आत्मा को और उसके ज्ञान को याने आत्मज्ञान को जानने की!
!! जय लक्ष्मी माता !!

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