Thursday, February 24, 2011

साधनाओ प्रकार

                    साधक के सामने बड़ी समस्या यह आती है की आखिर वो पहली बार किस मंत्र की साधना करें! और नए साधक को ये प्रश्न हमेशा सताता हैं की साधना शुरू कहाँ से  करें! क्यों की आज के इस भागदौड की दुनिया  वो न गुरूजी के पास ज्यदा देर तक रहा सकता हैं, ना साधनाओ के बारे मैं किसी और से बात कर सकता हैं! साधको की इस समस्या का समाधान करने के लियें मैं आपको सधंओंके प्रकार आपके सामने  प्रस्तुत कर रहा हूँ ! इन से साधको को साधनाओं के प्रकारों के बारे मैं जानकारी भी होंगी और साधना किस की करनी हैं ये भी उनको समजने मैं आसानी होंगी! और वो ये भी जन जायेगा की ये साधना जगत मैं किस समस्या के लियें किस सधना को करना जरुरी हैं!

                                                    
                                                     साधनाओ के दस प्रकार होते हैं!
  • शांति
                        निष्काम :- अपने इष्ट देव की प्रसन्नता के लिए जो नियमित भक्ति बिना किसी संसारक कामना से की जानेवाली साधना या मंत्र अनुष्टान को निष्काम साधना कहते हैं! इस साधना से आवश्यक कार्य इष्ट देव की कृपा से अपनेआप ही पूर्ण हो जाता हैं!
                       सकाम :- निष्काम साधना का हीं ये दूसरा रूप हैं! सकाम साधना में दशकर्म  और सभी लौकिक कामनाओ की साधनाएँ आती हैं!  
  • पौष्टिक :-  शांतिकर्म, ग्रहशांति, देवपूजन, स्वास्थ लाभ की साधनाएं, उद्योग-व्यपार के लाभ की साधनाएं, धन लाभ की साधनाएं, ये आदी अस्ध्नाएं पौष्टिक साधनाओ में आती हैं!
  • मोहन :- किसी प्राणी को दृष्टी या स्वरुप मात्र से अपने प्रति मोहित करना मोहन क्रिया कहलाता हैं! इसके लियें मोहन तंत्र-यन्त्र-मंत्र को भी सम्पन्न किया जाता हैं!
  • उचाटन :- इस क्रिया द्वारा मनुष्य या पशु-पक्षी अपने स्वास्थ से भ्रष्ट हो जाते हैं, इज्जत और मन सम्मान भी खो देते हैं!ये उचाटन प्रभाव थोड़े या जायदा या जन्मा भर के लियें जीवो पर होता हैं!
  • वशीकरण :- जिस क्रिया द्वारा वक्ती या पशु को अपने वश किया जाता हैं! उस क्रिया को वशीकार क्रिया कहते हैं! इस क्रिया में मान्त्रिक जैसा कहेगा वक्ती वैसा हैं करेगा! इसमें जिसपर ये क्रिया की हो उसे अच्छा या बुरा इसकी समज नहीं रहती !
  • आकर्षण :- जिस तंत्र  या मंत्र क्रिया द्वारा दूर रहने वाला या खोये हुयें मनुष्य या प्राणी-पक्षी को अपनी तरफ आकर्षित किया जाता हैं! इस क्रिया के अनेको देवता हैं,और उनके सेकड़ो मंत्र भी हैं! इस क्रिया द्वारा हम अच्छा परोपकार कर सकते हैं!
  • स्तम्भन :- किसी पशु-पक्षी या फिर इन्सान आदी जीवों की गति को रोक देना स्तम्भन कहलाता हैं! इस क्रिया के जरियें प्रनिवों की बुद्धि के साथ-साथ उनके शारीर को भी स्तंभित किया जाता हैं! इस क्रिया के प्रभाव से प्राणी कितना भी प्रयत्न करें पर वो प्रगति नहीं कर सकता हैं!
  • विद्वेषण :- जिस क्रिया या मंत्र विद्या के द्वारा वक्तियो , दो जीवों ,दो प्र्रिवारों के बिच वैमनस्याता शत्रुता की जाती हैं उसे विद्वेषण खाते हैं! इस विद्या का  उदहारण आपको अपने आसपास नजर आयेगा  जलन वश लूग ये क्रिया ज्यादा करते हैं!
  • मारण :- इस क्रिया द्वारा अन्य प्राणी याने पशु-पक्षी और मनुष्य की जीवन लीला समाप्त की जाती हैं! हाँ साक्ष्यात मृतु हैं इसका परिणाम होता हैं! ये खुले आम सबके सामने किया जाने वाला खून होता हैं जिसका साबुत किसी को पात  नहीं चलता!
    

Monday, February 21, 2011

क्या चाहता हैं फुल ?

              
                       फुल हमेशा सबका आकर्षण का केंद्र बना रहता हैं! वो भला किचल मैं क्यों न खिला हो पर वो अपनी सुन्दरता की छाप छोड़ जाता हैं! दुसरोंको आकर्षित करना ही फूलो का स्वाभाव होता हैं! ऐसे ये फूल दुनिया के हर एक कोने में पाए जाते हैं! इनकी कई करोडो प्रकारोंको वैग्यनिकोने खोज निकला हैं! और आज भी उनके कुछ प्रकारोसे हम अपरिचित हैं!  
                         फुलोंको तो हर कोई जनता हैं! इनके खुशुबू से हर कोई परिचित हैं! हम इन्सान ही के पशु-पक्षियों को भी ये अपनी सुन्दरता और खुशबु की और आकर्षित करते हैं! ऐसे इन फूलो के कई प्रकार हैं! कोई अपने रंग से  हमें लुभाता हैं, तो कहीं वो अपने खुशबु से पागल करदेता हैं! कहीं वो अपने फूलो की खुशबु के नशें में हमें मुर्छित करसकता हैं, तो कहीं उग्ररूप धरी फूल हमें चोट भी पहुंचा सकता हैं! 
                      ऐसे ये फूल हमेशा भगवन के चरनोमे गले में हमेशा सजते रहते हैं! इन फूलों को पाना हम इन्सानोका एक नशा होता हैं! हर एक इन्सानका एक पसंदीदा फुल होता हैं और उनको देखना, सूंघना उन्हें पसंद होता हैं! एसे इन फूलो की महिमाही निराली हैं! ये सब बातें हर कोई जनता है! इसलियें मैं आपको फूलों के अपने मुद्देपर लेकर चलता हूँ!
                                                हमारा मुद्दा हैं , आखिर क्या चाहता हैं फुल ?.....
                                              
                 हाँ हम सब के करते हैं फूलो के सात! जब भी वो खिलते हैं अपनी सुन्दरता को इस निसर्ग का एक भाग बना लेते हैं  हम के करते हैं उनके साथ! 
  • सबसे पहले हम उस फुल को तोड़कर एक पूजा की थाली मैं सजाते हैं! उनको अपनी प्राथना के साथ अपने इष्ट भगवन के चरनोमें श्रधा पूर्वक अर्पण करते हैं! या उनको माला मैं गुंथकर भगवन के गले मैं चडाते हैं! 
  •  दूसरा महिलाएं फूलो को तोड़कर अपने बालो मैं लगाकर अपनी सुन्दरता बढाती हैं! या फिर उनको गजरे मैं गुंथकर बालो मैं वो गजरा लगाकर अपनी बालो की शोभा बदती हैं!
  • तीसरा हम फूलो को तोड़कर अपने घरके एक कोने मैं रखें गुल्दानी मैं फूलो को सजाते हैं, या फिर घरो के दरवाजो पर उनकी बनायीं माला लागतें हैं! 
  • चौथा  हम फुलोकों तोड़कर कभी हमारे पूर्वजो की समाधी पर चडाते हैं, तो कभी उनकी याद मैं उनके तस्वीर पर चढाते हैं! और कभी हम इन फुलोंको एक पार्थिव शारीर पर भी चढ़ा ते हैं! और उनकी अंतिम यात्रा मैं फूलो को भी अलविदा खादेते हैं!

                         तो अपने जीवन मैं इन चार प्रकारोसे हम फूलों को अपने पेड़ से अलग करते हैं! पर ये चारो प्रकार एक दुसरे से काफी भिन्न हैं! भगवानके पास उनको श्रधा के सात अर्पित करते हैं! और वैसे हैं महिलाएं  फूलो के सात अपनी सुन्दरता बदती हैं! कहीं  हम उनको अपने पूर्वजो की याद मैं चडाते हैं तो कहीं घर मैं अछे वतावर के लियें रखते हैं! 
                         फूल ये क्या चाहता हैं ......? हाँ , के हमें पता हैं की आखिर फूल क्या छठा हैं ...? 
कभी हमने ये जानने की कोशिश की , नहीं कभी नहीं!
                            क्या हम भगवन के सामने उनके चरणों पर अपने पवित्र मन का गुलदस्ता नहीं चाडा सकते, आखिर मनका फूल सबसे पवित्र और पवन फूल हैं ये हमारे पुरानो मैं लिखा हैं!  तो जब हम इंसानों के पास मन हैं तो के हम अपने मन को  पवत्र  करके उसको फूल रूप से अपने इष्ट को अर्पित नहीं करसकते! आखिर मनका फूल ही सर्वश्रेष्ट हैं! क्या हमारे पास मन ही नहीं हैं ..?
                           पुरानो मैं ये भी लिखा हैं की, " नारी साक्षात् इश्वर की पूर्ण कला हैं! " तो इस पूर्ण कला को जब भगवान ने रचा हैं, तो हम इन कलाओ मैं फूल लगा कर इश्वर की रचना का उनकी कला का अपमान क्यों करते हैं! क्या हम अपने भगवन का आदर नहीं करते हैं?
                            जब फूल के पेड़ो को हम अपने आंगन में सजाकर अपने घर की शोभा बढा सकते हैं, उनको गमलो मैं रख कर घरके वातावरण को पवित्र , आनंदी  बना सकते हैं, तो फिर हूँ उनको एक-दो दिनों के लियें तोड़कर फूलदानी मैं क्यों सजा ते हैं...?
                             हम अपने पूर्वजो की याद मैं, अश्रु भी चाडा सकते हैं, तो फीर फूल को अश्रुका रूप देकर चढाकर अपनी याद का दिखावा हम क्यों करते हैं! एक एक आत्मा शेरीर को छोड़कर चली गयी तो हम उनके साथ फूलो को भी ये निसर्ग छोड़ने पर क्यों मजबूर करते हैं! 

                              आखिर हम इन्सान ऐसा क्यों करते हैं क्यों की हमारे पास सोचने की ताकत हैं इसलियें! ऊपर की सभी बातो मैं हम इन्सान अपनी स्वार्थ के लियें फूलो की अली चढ़ा ते हैं! आखिर के हक हैं हमें, इस प्रकृति के साथ खिलवाड़  करनेका! फूल क्यों चाहेगा की वो भगवन के चरणों मैं छाडे  या गले का हार बने, आखिर उनको भी बनानेवाला वहीँ भगवन हैना, क्या भगवन कहेगा की हम उनपर फूल चढायें! एक घर कहेगा की उसके उंदर रहनेवाले पयार और समाधान के साथ उसमें रहें, वो क्यों चाहेगा की फूलो को घर मैं सजाओ, घर का आनंद खर्वालो की ख़ुशी मैं रहेगा ना! नारी की सुन्दरता सादगी मैं होती हैं, उनको फूल लगाकर दिखावा करनेकी के जरुरत हैं! और पूर्वजो की हमें याद हैं, इसिसे हमारे पूर्वजो की आत्मा खुश हो जाएगी! उनके सात दिखावा करनेका के फायदा! और मृत शरीर, जब आत्मा हिन् उसे छोड़ गई, उसे आत्मा के जाने का वियोग पता हैं,वो खुद फूलों को अपने पेढोसे दुरी का वियोग क्यों देना कहेगा! अपने साथ वो उनका  अंतिम संस्कार क्यों करना चाहेगा!  
                             आखिर फुल तो यही चाहेगा न की वो अपने पेड़ पर खिले, अपनी सुन्दरता बढ़ाएं, अपने रंग खुशबु से दुसरोका मन जितले. वो तो यहीं चाहेगा ना की वो हवा के झोके के सात नांचे , उसपर आनेवाले तीलियों, भवरों के साथ खेलें! फूल तो यहीं सदा चाहेगा की उसे मिली एक दिन की जिन्दगी मैं वो इस प्रकृतिका एक भाग बने इस श्रृष्टि का आनंद ले! वो यहीं चाहेगा की वो सदा अपने पेड़ पर खिला रहें और वहीँ पे वो मुरझाकर अपनी याद छोड़ जाएँ! 
                           इसलियें हम इंसानों को जो पुरानो मैं लिखा हैं वो समजना चाहिंए, प्रकृति के रहस्यों का पता लगाना चाहियें ! नाही की मुर्खता वश अपने स्वार्थ के लियें अपनी  साधना के लियें मुके पशु-पक्षी यों की बलि देनी चाहियें!
 

Sunday, February 20, 2011

साधू स्वाभाव

                                                         !!  जय लक्ष्मी माता !!
                 हमारा ये भारत देश एक महान देश हैं! इस देश में भगवन और उनके पूज्य अवतारों के चर्नस्पर्ष से ये भारत भूमि पवित्र हो गई हैं! इसलियें इस कलियूग मे भी साधना और अध्यात्म में रूचि रखने वाले आज भी जन्म लेते आ रहे हैं! इस भूमि पर कई महान तपस्वी, ऋषि, साधू,संय्सी,मुनि,संत,आदि ने अपनी साधनों को सिद्ध कर, भगवन की कठोर भक्ति कर इस कर्म भूमि पर अपना नाम अमर किया हैं! आज भी वाल्मीकि, विश्वामित्र, व्यास, दुर्वासा, आदि का नाम आदर से ललिया जाता हैं! इन महान पुरुषो के साथ सती अनसूया, सोना माता, आबाइसा, संत मीरा बाई , इन आदि स्त्री शक्तियों का भी गुणगान हम आज भी करते आ रहे हैं! 
                   इन सभी महान वक्तिमत्वो ने घोर तपस्या और कठिन परिश्रम करके भगवान को पाया हैं, ब्रम्हाज्ञान को अनुभव किया हैं! और अंत: में वो सभी उनमे ही लिन हो गए! हम ये कभी भूल नहीं सकते! हम अगर आपकी बुद्धि आजके वैज्ञानिक बातो पर विश्वास करती हैं! तो  में आपको ये बता दूँ की संत मीरा बाई  और शिर्डी के साईं बाबा की बातो को जायदा समय नहीं बिता होगा! क्यों की वो दोनों भी कलयुग के ही थे ना,  मीरा बाई उनके कृष्ण भक्ति के गीत आजभी कानो में सुनने को मिलते हैं! आखिर वो एक निराली साधक थी,और उनकी साधना भी उतनीही निराली थी! जो साधा अंत: में सफल होकर मीराजी अपने में लीन कर अपनेमे समां गयी! इसलियें कहाँ जाता हैं की, मेरा बाई के कृष्ण भक्ति के आन्सुवोने राजस्तान का पाणी सोख लिया!

                   तो इन हर एक साधू- सन्यासी ओं की आपनी एक अलग बात हैं, एक अलग पहचान हैं! मात्र मंजिल सबकी एक हैं! भला हैं उनके रस्ते अलग-अलग क्यों ना हो! ऐसे साधू-संतो के दर्शन मात्र से के लाभ मिलता हैं ये में अपने पहले लेख ( सज्जन पुरुषो के दर्शन से के लाब मिलता हैं ? ) में बता चूका हूँ ! 
                 आज मै आपको ये बताना चाहता हूँ की, कैसे होते हैं साधू-संत , कैसा होता हैं साधू-संतो का महान वक्तिमत्व. कैसा होता हैं उनका स्वाभाव !
                  जिनके दर्शन मात्र से हमारी आँखे धन्य हो जाती हैं! उनका सहवास हमें मिला तो हमारे विचारो में अपने आप बदल होने लगता हैं! मानो पारस से छुकर लोहा भी सोना बन जाता हैं, उसी प्रकार हम भी अपने विचारो की गंदगी को दूर करके इश्वर भक्ति में लीन हो जाते हैं!
                 साधू-संत तो पेढ़ और नदी की तरहा होते हैं! जो अपने लियें कुछ भी नहीं रखते हैं, ना कुछ पाने की इच्छा भी रखते हैं! जिसतरह गंगाजी खुद दुसरो की प्यास बुझाकर खुद प्यासी रहती हैं! उसी प्रकार पेढ़ दुसरो को आसरा, छाया देता हैं, फल देकर दूसरोंकी भूक मिटाता हैं! और खुद सदा बिना आसरे के धुप में भूका प्यासा खड़ा रहता हैं! उनकी तरहा हैं साधू-संतो का स्वाभाव होता हैं ! जो खुद के लियें नहीं दुसरो की मदत करते हुयें इश्वर भक्ति में लीन होजाता हैं! 
                 साधू-संत  तो रोटी के एक टुकड़े में भी संतुष्ट हो जाते हैं! क्यों की उनको भूक होती हैं भगवान के दर्शन की, प्यास होती हैं भगवान के भक्ति की! एसे साधू -संत तो गुलाब के फूल की तरहा होते हैं! वो कहीं पर भी राहों उनके विचारोंकी खुशबू हम इंसानों को क्या पशु-पक्षियों को भी अपने तरफ आकर्षित करती रहती हैं! और साधू-संत हमेशा इंसानों से दूर जंगलो , हिमालयों में जा बसते हैं! और हम लोग उनके पीछे वहां तक पहोच जाते हैं!
          
             एसे  साधू-संतो का स्वाभाव निर्मल और कोमल होता हैं! वो सदा काम, क्रोध, लोभ, आदि विकारोसे सदा मुक्त रहते हैं! आप उनकी आँखों में देख सकते हैं की  कितनी आशा हैं उनकी आँखों में भगवान को पाने की, कितनी प्यास हैं उनकी आँखों में भगवान के दर्शनों की! एसे साधू-संत हमारे बिच रहकर भी उनका मन हमेशा इश्वर के चरणों में होता हैं! उनके सामने जात-पात, धर्म,ना डर रहता हैं! बस बचता हैं तो सिर्फ एक प्यास! भगवान को पाने की प्यास ! उनके शरीर में साधनाओ की गर्मी होंगी, परीक्षाओ की तकलीफ होंगी पर मन में निराशा नहीं होती! जिस तरहा सूर्य उदय होते हीं अपना तेज बढ़ता हैं, उसी प्रकार तरहा साधू-संत लोग भी हर समय अपनी भक्ति का तेज बढ़ाते रहते हैं! और प्रभु भक्ति में लीन होते जाते हैं ! 
                                                    !! जय लक्ष्मी माता !!


Saturday, February 19, 2011

एकाग्रता


साधक को मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा और भक्ति व विश्वास होना अत्यावशक है! वर्ना मंत्र साधना में सफल होना कठिन ही नहीं नामुमकिन भी है! अंत: साधक को मंत्र का जाप करते समय पूर्ण मन को एकाग्रचित्त करना जरुरी हैं!
          जब साधक अपने मन की क्रिया को नियंत्रित करके मन को  एकाग्रचित्त करके जाप करता हैं, तब वो साधक बहार के क्रिया कलाप तो नियंत्रित हो जाता हैं! परन्तु अंतर्मन के क्रिया की गति बाद जाती है! क्यों की मन का स्वाभाव ही चंचल हैं , वो एक पिजरे मैं बंद नहीं होना चाहता हैं! इसलियें साधक को सबसे पहलेकिसी भी हालत मैं अपने मन को अपने वश करना हिं होगा! क्यों की साधना मार्ग पर हमारा शारीर मात्र एक माध्यम हैं! सब हमारे मनपर निर्भर हैं! जब साधक साधना काल मैं आपने मन को एकाग्र करना चाहता हैं, तब हमारा मन उल्टा और क्रियाशील हो जाता हैं! जब साधक अपने मन को एकाग्र करने में सफल हो रहा होता हैं, तब तब उसका व्यव्हार बालने लग्जता हैं! जैसे उसे नैशार्गिक आनंद की प्राप्ति हो रही हो ! उसमे काम , क्रोध, लोभ, अदि लुप्त होने लगता हैं! और वो वैराग्य की तरफ आकर्षित होजाता हैं,संसार उस्केलियें मात्र एक माया हो जाती हैं!
               साधक एकाग्र होकर जब साधना करता हैं तब उसे सफलता आसानी से मिल जाती हैं!पर यदि साधक अपने मन और शारीर के इन्द्रियों पर नियंत्रण मैं थोडासा भी ढीला हो जाता हैं तो, उसकी सभी महेनत पाणी मैं मिल जाती हैं! इसलियें साधक को साधा हैं कठोरता से मन को एकाग्र और इन्द्रियों पर अंकुश लगाकर रखना चाहियें !
                 हमारा मन भौतिक सुखो की तरफ हमेशा हैं आकर्षित होते रहता हैं, भला ही साधक सन्यासी क्यों ना हों! मन को भौतिक सुख से दूर रखने के लियें साधक को कठिन परिश्रम करना पड़ता हैं! और सात हैं कांफिडेंट और धैर्य रखना पड़ता हैं!
                जिस शक्ति की साधना साधक करता हैं, वो शक्ति जागृत होने से पहलें अपने सिद्धि प्रदान करने से पहले साधक की परीक्षा लेना कहते हैं! इसके जरियें वो सधक इस सिद्धि के काबिल हैं या नहीं वो जान लेते हैं! जब साधक की प्रत्रता हो तो वो सिद्धि उसे सिद्द हो जाती हैं ! पर इसी परीक्षा मैं मन की एकाग्रता की परीक्षा हो जाती हैं! खाहने के लियें मात्र ये एक माया हैं पर जो साधक मन को एकाग्र करपाता हैं वो हीं इस माया को हरा देता हीं!
  !! जय लक्ष्मी मत !!

Friday, February 18, 2011

सज्जन पुरुषों के दर्शन से क्या लाभ मिलता है?

                            साधनाओ से भी बढकर हमारे जीवन में एक बात की अवशाकता है , वो है सज्जन पुरुषों, संतों, साधू-सन्यासियों के दर्शन! जो साधना सिद्धि से भी बढकर है! इन साधू-सन्यासियों के दर्शन मात्र से हि सदगाती प्राप्त हो जाती है! जो इश्वर से भी बढकर है!
                               साधू वह है जीसमे क्षमा, सहेंशिलता और  निस्वार्थ भावना है! ऐसे संत पुरुषों का दर्शन आजकल वर्तमान में दुर्लभ है! तो प्रश्न उठता है की सज्जन पुरुषों के दर्शन से क्या  लाभ मिलता है?
                             एक बार नारद के मन में यह प्रश्न उठा! तो उन्होंने ब्रम्हा के पास जाकर प्रश्न किया की , प्रभु सज्जन पुरुषों के दर्शन से क्या  लाभ मिलता है? तो ब्रम्हा जी कुछ देर तक सोचते रहें और बोले इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं है! आप जाकर भगवान शंकर से पुछो! भगवान शंकर से भी नारद मुनि निराश होकर भगवान विष्णु के पास गयें! उनसे भी नारद जी ने वहीँ सवाल किया. प्रभु सज्जन पुरुषों के दर्शन से क्या लाभ मिलता है?
                                 भगवान विष्णु मुस्कुराकर बोले  काशी में गंगा नदी के किनारे कीचड़ में एक केचुआ है! उससे जाकर अपना सवाल पुछो !
                                नारदजी भी काशी में केंचुए के पास पहुँच गये! और उससे भी उन्होंने वहीँ  सवाल किया! केंचुए ने नारदजी का सवाल सुना और नारद जी को आंख भर देखा और प्राण त्याग दिया ! तो नारदजी पछताते हुए विष्णु के पास पहुंचे ! विष्णु भगवान नारद जी को बोले की आपको आपके प्रश्न का उत्तर अब साल भर के बाद मिलेगा ! नारद जी भी जिद पकड़कर थे की किसी भी हालत में वो इस प्रश्न का उत्तर जानकर ही रहेंगे!
                             साल भर बाद नारदजी को विष्णु ने यमुना किनारे विचरण कर रहें एक नाग को ये सवाल करने को कहां! नाग ने भी नारदजी का सवाल सुन कर उनको आंख भरकर देखा और प्राण त्याग  दिया!
                           अब नारद जी झुझला उठे! और भगवान विष्णु के पास पहुंचे ! उन्होंने सालभर बाद फिर से नारद जी को आने को खाकर उन्हें विदा किया! सालभर बाद भगवान विष्णु ने नारद जी को  काशी के रजा के घर जन्मे नवजात बालक राजकुमार को ये सवाल करने को कहा! नारद जी भयभीत हो गये की प्रश्न को सुनते ही यदि इस बार राजकुमार मर गया तो मेरी खैर नहीं! राजा मुझे नहीं छोड़ेगा! परन्तु भगवान के आदेश पर वो उनके घर गये! बच्चे से मिलने की इच्छा व्यक्त की! राजा ने उन्हें आदरपूर्वक बच्चे तक पहुँचाया!
                                                  उस बच्चे को जन्मे हुयें मात्र छः घंटे हुए थे!
              नारद जी ने बच्चे से वहीँ प्रश्न किया - हे बालक ! सज्जन पुरुषों के दर्शन से क्या लाभ होता है!
                           उस बालक ने नारद जी को प्रणाम किया और कहां की हे मुनिवर ! में एक केंचुआ था! आपके दर्शन को प्राप्त कर में उस अधम योनी से मुक्ति प्राप्त कर सर्प योनी में गया! उसमें भी आपके दर्शन का अवसर मुझे मिला ! जिसका परिणाम ये हुवा की में  नाग योनी से छुटकारा पाकर अभी मानव योनी में  राजा के घर जनम लिया हूँ! इसमें भी आपके दर्शन हो गयें हैं! जिसके फलस्वरूप संपूर्ण सुखों का उपभोग करके इस योनी से भी मुक्ति पाकर मं वैकुण्ठ धाम जाऊंगा!
                                                 नारद जी को उनके प्रश्नों का उत्तर मिल गया था !
            तो सज्जन पुरुष इश्वर के सामान होते हैं! जिनके दर्शन से कलयुग में भी हम भवसागर पार लगा सकते है!                                                         !! जय लक्ष्मी माता !!

Wednesday, February 16, 2011

साधना का अर्थ

             

                                                                   !! जय लक्ष्मी माता !!


                                                          साधना का अर्थ
         मानव शारीर एक मिटटी के घड़े की तरह होता है! और  मानव शरीर नश्वर है और अपवित्र भी है ! इसलियें किसी मिटटी के घड़े में हम यदी गंदगी भरकर उसे गंगा जल से धोयेंगे  या फिर उसे गंगाजी में साल भर डुबाकर रखेंगे ! पर जब हम सालो बाद उसे निकालेंगे और खोलेंगे तो घड़े में गन्दगी ही पाएंगे ! इसीलियें हम लाखो तीर्थयात्रा करें , पर हमारा  शारीर तो शुद्ध नहीं होगा ! परन्तु हमारा शारीर सजीव है ! हमारे शारीर में आत्मा का वास है , इसीलियें ज्ञान से ही ये शारीर निर्मल होता है!
              गीता-पुराण , कुरान , बायबल , अदि विभीन धर्मो की किताबो में ये लिखा है, की मै ही परमात्मा हूँ ! तो फिर हम लोग इश्वर को मंदिरों, मस्जितो ,गिरिजाघरों मै क्यों खोजते है! इसलियें हमें खुद के और भगवान के बारे मै समजना पड़ेगा ! मानव शारीर के अन्दर इन्द्रियों का संचालन हमरा मस्तिष्क करता है और हमारे मस्तिष्क की डोर हमारे मन के हातो होती है! यदि हमरा मन पवित्र है तो हमारा शारीर पूरा पवित्र ही! तो इसका मतलब यहीं हुवा की मन की साधना ही सबसे ऊँची साधना है ! 

                   साधना का साधारण भाषा में सही अर्थ है साध्य होना , पा लेना , कुछ है जो आपने साद लिया ! उदाः आप एक चित्रकार हो और आप दिन रात चित्रों के बारे मं सोचते हो और चित्रकारी करते हों ! और यहीं सालो तक करने के बाद आपको अपनी चित्रकारी में महारत हासिल हो जाएगी ! इसका मतलब आपने अपनी कला को साध लिया ! याने आपने इतनी सालो मे जो महेनत की वो आपकी साधना थी , और जो उस में प्रवीणता हासिल की वो आपकी सिद्धि थी !
           इसका मतलब हम जो भगवान की कृपा पाने को करते है, वही हमारी साधना है !और जो हम भगवान से प्राप्त करते है , वो हमारी सिद्धि कहलाती ही ! इस साधना को करने के लियें हमें अपनी आत्मा की पवित्रता की जरुरत होती है! क्यों की हमरा शारीर ही हमारा माध्यम है ,जो हमें  हमें इश्वर प्राप्ति
में  मदत करता है ! शारीर आत्मा से ही सजीव कहलाता है ! और हमारी आत्मा का मंदिर ही हमारा शारीर होता है! बस हमें जरुरत है उस आत्मा को और उसके ज्ञान को याने  आत्मज्ञान को जानने की!
                                                           !! जय लक्ष्मी माता !!

Monday, February 14, 2011

God and Religions



God and Religions


                Today everyone knows about god. But they did not say perfect meaning of god. And our earth we all are fallow different-different religions.  like Hindu, Islam , Kristian ,Buddhism , Jainism , etc... and each and every religions have our different culture different language and also different god too.
            So my question is. people were  created religions? or god was created  religions?  if god was created religion than,  why he created different-different religion!
            I know my question is very confusing and difficult to understand. if we want to get answer than,  we know first about the god .

                                                What is god.?

             Every religions have one god or many god's . they all are follow them . and there god also help them .   here one point is prove  one power is there . it is help us and we call them god .
             It’s means one natural power around us in our world. but we is not seen it . but that natural power telling us it's availability . and  we all are  called  it's god . we don't know anything about that holy power . Just we are know it is father or mother in our hole world.    
           We all are humans .that's why we want one way to go to near by god . or understand the deep things of god . that's why humans were created all different-different religions .and also every religions have different way . some religions are little bit connected to others and some  are very different from others . and every religions have special god . some are prayer to nature, some are prayer to air , some are prayer to animals or some prayer to own imagination . it means every religion were created our own different imagination of god . and they follow them .and now also they doing prayer of our god .
           Here our one point is clear. people's created our religions and also they were imagination of our god . and they were created direct  a symbol of our god .  or indirect they follow the our god's.
           When we start the deeply study of various religions . than we will know  religions are different and they all are have different way too. but they all are have same aim.
           But nobody can't understand this  deep things . we have one way to understand the divine power of a god .but we all are foolish humans . we all are  without understanding starting the fight of religions.  please, we should  stop the fight and first understand the divine power of god.
           In the our earth any religion is not a bad or small . they all are only  way . they all  are help us to take  near to god  . every religion telling us a knowledge of good lifestyle . no one can't telling us a about the fight.
           So please don't go to the path of fight . and don't be a confused about the god. just try to understand divine power of holy god and change our lifestyle .
                                     Just trust on them ..................and follow  our own way.

                                                               Thank you

Tuesday, February 8, 2011

jai laxmi mata


                                                  It is a story about goddess Mahalaxmi.
    It was story in Gujarat .  bhadrashrava was  king in Gujarat . he was a  very brave and intelligent man in the world .and his queen name is suratchandrika . she is a very beautifully women in the world. they got seven son's. and one  younger daughter . and daughter name is shyambala . one day one thought came in mahalaxmi's mind " I will stay i n kings kingdom . and after that king will be very happy and also king will be given happiness with his people's. ".  " if i will staying is poor man's home , than king will eating all his property for himself only . he will be a selfish person" . that's why goddess laxmi  change har look in a old age women . she putting a long stick in her hand . and she slowly slowly walking  came front of  queen palace . her look like old age women but also she has very good attraction and golden globe on her face .one palace servant seen her face. she came front of laxmi mata  .  lady servant was asking a question to old sage women . where are you from ? , what is your husband name ?. etc...
         laxmi said to lady servant, "my daughter , my name is kamla. my husband name is bhuvanesh . we are staying at  dwarika .  your queen her past life wife of businessmen .her husband was very poverty . they did doing fight every day and night . and her husband was bitten very badly. after all  she was abondon  her husband . and run away to home . without food and any place she was walking in forest .when i was seen her condition . i feel kindness about her. and thats why i was given her  a knowledge of maha laxmi vrata . because mahalaxmi vrat given us a happiness , peace  , money. etc .
   she was did mahalaxmi vrat . and he was got all things . mahalaxmi was give her all happiness in her life . after some days they both husband and wife was died .they did mahalaxmi vrata thats why they both was stayed in wealth . how many years they did laxmi vrath . same thousand years they got wealth and happiness.   but now they both was born  in royal family . but your queen forget that laxmivrat . that's why i am came here for reminding laxmi vrath .
  when lady servant listen old age womens words . she was doing namaskar to lady goddess and prayer her to tell her knowlege about mahalaxmi vrata. and our goddess laxmi mata was told her to all things about the puja vidhi .after that lady servant giving a very thankfully namskar to leady and she is going to in palace . for the message of old age women to queen .   but her queen has ego for her wealth . when she heard old age women message . she have very angry . and she came front of laxmi mata . and she is talking with her very roughly. queen doesn't have any idea about the old age women is a laxmi mata  . thats why laxmi mata think to go out . and she starting to go out . she came out to place door . after some distance princess shyambala meet with her . shyambala knows everything .she requesting a old age  laxmi mata to forget everything and give her sorry . and goddess laxmi given her to puja vidhi to laxmi vrata . that day was first thus-day in margashirsha month . princess shyambala did a  mahalaxmi vrata . with a same puja vidhi .  thats why she got marriage with  sidheshvar kings sun's maladhar prince . she  got aal things in her life and she is staying happily with her husband .
         and here queen surat chandrika and her king bhadrashrava was lose all his kingdom , money, wealth , happy ,etc  for by only angriness of goddess laxmi. they doing a hard works  for the food .one day queen said his husband ," our sun in low is very rich man .he is a king  . you should go with his kingdom . and you will tell him everything , he will be try to help us ." king agree y with her wife.  and he is came in our daughters  kingdom. he was sit near by lake  for the rest . there are came shyambals's  lady servant for the water . they all are seen bhadrashrava king. his is wearing royal dress . that's why servant  is asked him . name  etc... he told them everything . when servant  understand hi is king  father of shyambala . they all are run away . they came to front of shyambala and they told him everything. shyambala send royal dress for father with servant's hand .and he call them very proudly and she doing welcome with our father very royal type . .when  king bhadrashrava reached in her palace . she giving him a very respect . and also he she given him a royal food too. when  king is going to return . than shyambala was giving a gold as a gift .when king was came his home . than queen feel very happy because shyambala giving them a  gold . when shuratchandrika opened the cover of pot . she was shocked . because there are  not any gold  . there are only coal. it is miracle of angriness of goddess laxmi.  
           after some days later queen suratchandrica  came her daughter's home .that day was last thusday  of margashish month .that day shyamba doing mahalaxmi vrata . and also she teaching and  her mother too. her mother also doing laxmi vrata with shyambals's guidance .when queen suratchandrica came her  palace . she did maha laxmi vrath that's why she got her everything . wealth money , kingdom , happiness etc ...after some days shyambala came  her fathers home.
               she was not giving anything for her mother and also she was giving coal  with father . that's a reason  her mother is very  angry with her .that's why nobody can asking any question with shyambala. her mother insulting is shyambala.but shyambala never angry on her mother . she came return . when she came return that time she took some salt with her. when she came her palace . her husband asking her ," what are you bringing  your mothers home." she said ,' everything for king." her husband said ," what .? she said ' please take time i will tell you , ". that day she  giving a order to cook a food without salt. and she putting  everything her husbands plate.   when her husband eat all food , he said it is not tasty . than shyambala  giving a some salt in husband plate. after her husband said  ye , now is perfect .
      after shyambala said her husband  , " it all things for king ." her husband agree with her . after they both finished food .
   same like who are doing maha  laxmi vrata . with true hart . they should got a blessing of mata laxmi. and mata laxmi giving them a every thing . like money , wealth , peace, etc....but after got wealth do do bad works . please read laxm ivrath story . do mahalaxmi vrath .
                       maha laxmi vrath giving us blessing .
                          now finish a story about mahalaxmi vrath .
                                        !!:: oum shreem namha ::!!